Monday 19 September 2016

कागभुशंडि.....पितरों तक हमारे संदेशवाहक।



कागभुशंडि
श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष चल रहा है आजकल। हम में से अधिकांश को याद होगा कि पितृ पक्ष में जब मां पत्तल में खीर, पूरी, भात-दाल आदि व्यंजन परोस कर इधर उधर आह्वान करती तो कागभुशंडि अर्थात कौए दल-बल के साथ टूट पड़ते और प्रसाद ग्रहण करने के बाद किसी पेड़ की डाल पर बैठकर दो-चार बार कांव-कांव करते माना कृतज्ञता ज्ञापन कर रहे हों। हमें विश्वास होने लगता है कि वे हमारा कुशल-क्षेम पितरों तक पहुंचाने हेतु विदा मांग रहे हैं और देखते ही देखते वे उड़ जाते।
 एेसा कहा जाता है कि सुबह सुबह घर की मुंडेर पर कौए का बोलना शुभ होता है और परदेश गये किसी अपने का घर आगमन का सूचक होता है। लेकिन अब कहाॅ कागा ? अब तो इंटरनेट का जमाना है, मोबाईल क्रांति है, सोशियल मीडिया जैसे फेसबुक, वाट्सअप का दौर है.........परदेशी को तो जाने के समय से आने तक हर मिनट और हर घड़ी आगमन ही नहीं अपने कृत्यों की जानकारी भी पल पल घर में देनी होती है.........वरना शामत ही समझो...?

अपने बचपन की पाठशाला में कौएे की बुद्धि-चातुर्य की कहानी सुनी थी, गरमी का मौसम था सभी नदियां, तालाब आदि सूख गये थे। पानी की तलाश में कौआ इधर उधर उड़ रहा था। अचानक एक घड़ा उसे दिखाई दिया उसमें पानी तो था लेकिन बहुत नीचे तले में था उसकी चोंच उस पानी तक नहीं पहुंच पा रही थी। फिर उसने अपनी बु्द्धि का इस्तेमाल करते हुए आसपास पड़े कंकड़ पत्थरों को उस घड़े में डालना शुरु किया और कुछ ही देर में पानी घड़े में ऊपर आ गया और कौआ पानी पीकर परितृप्त हो गया।


अब मै बालक नहीं रहा, पिता हो गया। कल ही की बात है अपनी बिटिया की किताब देख रहा था तो ज्ञात हुआ कि कौए का पाठ अब बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता, एेसी प्रेरणादायक कहानी से शिक्षा नीति के निर्धारकों को कोई मतलब नहीं रह गया। कौए की जगह आलू ने अवश्य ले ली है, जिसका स्वाद पाठकगण भी ले सकते हैं.........
काटा आलू
निकला भालू
या फिर कुछ इस प्रकार....
ककड़ी पर आई मकड़ी
ककड़ी ने कहा - भाग,
मकड़ी ने मारी लात
अफसोस है हमारे शिक्षाविदों पर जिन्होंने शिक्षा को प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया है, परिवर्तन के नाम पर सबकुछ बदल डालने की झटपटाहट ? एेसी तुकबंदियों से भाषायी संस्कार या वैचारिक बुनियाद बन सकेगी ?
कल्पना शक्ति को भोथरा करने वाली एेसी पाठ्य सामग्री से सिर्फ कविता ही संकट में नहीं है, अपितु मानव जाति संकट में है। मनुष्य तो होगा पर नितांत एकांगी, अन्यमनस्क, मनहूस, स्वप्नविहीन और स्मृतिरहित।


मुझे कोई आश्वस्त करेगा कि ब्रह्म मुहूर्त का आभास कराने को हमारे घरों की मुंडेर पर कौए आयेंगे .....?

Tuesday 12 January 2016

स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी मकर संक्रांति - नैतिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी मकर संक्रांति - नैतिक शिक्षा


हमेशा से ही यह सर्वमान्य है कि मानवता ही सच्ची राष्ट्रीयता है। अब विचारणयी प्रश्न आज के युग में यह है कि मानवता से क्या अभिप्राय है..? युगों से हमें मानवता – आध्यात्म – योग की दिशा में स्वामी विवेकानन्द जी से ही प्रेरणा मिलती रही है। मानवता तभी बलवती होती है, जब हम में कहीं न कहीं नैतिकता का प्रकाश आलोकित करता है।


हममें से शायद सभी ने अपने बाल्याकल के समय कक्षा आठ तक एक विषय के रुप में नैतिक शिक्षा यानि Moral Science का अध्ययन किया होगा और नैतिक शिक्षा तो हम सभी को सबसे पहले अपने परिवार से ही मिलने लगती है। फिर भी आज इस बात पर जोर दिया जाता है, कि भौतिकतावादी युग में नैतिक मूल्यों का पतन अत्यधिक हो रहा है। जब बात मानवता और सच्ची राष्ट्रीयता की आती है, तो निश्चित रुप से नैतिक मूल्यों की बात करना लाजिमी हो जाता है। यदि मनुष्य के अन्दर नैतिकता नहीं होगी तो फिर मानवता और सच्ची राष्ट्रीयता की बात करना बेमानी है। ऐसे में हमें स्वामी विवेकानन्द से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने भारत ही नहीं वरन् सारे विश्व को नैतिकता का पाठ पढ़ाया, जिसे हम आध्यात्म भी कह देते है। योग और आध्यात्म की ओर अग्रसर होने में नैतिक मूल्यों के प्रति मानव की दृष्टि और भी स्पष्ट होने लगती है तथा मानव सच्ची मानवता का वरण करते हुये सच्ची राष्ट्रीयता की सोच के साथ समाज में अपना योगदान करने लगता है।



पॅाच आध्यात्मिक शक्तियां जो हमें सच्ची मानवता की ओर ले जाती हैं  शुद्ध उपस्थिति की शक्ति, जब आप अहंकार के साथ उपस्थित रहेंगे तो कार्य नहीं होंगे और जब निराकार उपस्थित रहेंगे तो घटनायें खुद पर खुद लक्ष्य की तरफ होने लगती हैं। स्व स्थिरता की शक्ति – इंसान स्थिरता तभी खोता है, जब वह समस्या से भागना चाहता है और पलायनवादी बन जाता है, हमें पलायन से मुक्ति पाना जरुरी है। एहसानमंदी भाव शक्ति – अपने जीवन में आनेवाली हर चीज के प्रति ईश्वर के प्रति एहसानमंदी यानी धन्यवाद का भाव रखना। भाव का प्रभाव सभी सकारात्मक चीजों को आकर्षित करता है। समेटने की शक्ति – समेटने की शक्ति यानी अपने उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करते हुये अपनी ऊर्जा को लक्ष्य पर समेटना। उदासीन उत्साह शक्ति – यानी जो भी काम कर रहे हैं, उसे अनासक्ति भाव से करें तात्पर्य है कि जो भी कर्म करें उसके आने वाले फल के प्रति उदासीन रहें।

Saturday 9 January 2016

त्रिस्तरीय(Three Tier)  पंचायतीराज व्यवस्था बनाम द्विस्तरीय (Two Tier) पंचायतीराज व्यवस्था

देश में पंचायती राज व्यवस्था लाने का श्रेय निःसन्देह पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गाॅधी को जाता है, जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से सत्ता का विकेन्द्रीकरण करने की ठानी जिससे देश के अंतिम व्यक्ति तक विकास की रोशनी पहुॅच सके। वर्ष 1992 -1993 में 72वें और 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पूरे देश को अधिकांश राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई। इस त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में आज लगभग 22 वर्षों से प्रति पाॅच  वर्ष के लिये ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधान, विकासखण्ड स्तर पर  क्षेत्र पंचायत सदस्य/ क्षेत्र पंचायत प्रमुख तथा जिला स्तर पर जिला पंचायत सदस्य - जिला पंचायत अध्यक्ष को जनता द्वारा चुना जाता है।
जहाॅ तक जानकारी है, कि अधिकांश राज्यों में ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member) और जिला पंचायत सदस्य ही सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता द्वारा न होकर चुने गये सदस्यों के द्वारा किया जाता है। हाॅल ही में उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव 2015 -16  के परिणामों पर एक विश्लेषणात्मक नजर डाली जाये तो परिणाम मिलेगा कि अधिकतर क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष प्रदेश में सरकार चला रही सत्ताधारी दल के ही बने हैं, इससे पूर्व भी अधिकांश राज्यों में कमोबेश ऐसा ही होता आया कि सत्ताधारी दल के ही अधिकतर क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष बनते हैं । अक्सर इसमें धनबल,बाहुबल और सत्ताबल के प्रयोग किये जाने की शिकायतें प्रमाण सहित मिल जाती हैं और यह एस सच्चाई भी बनती जा रही है,कि पंचायत और नगरनिकाय के चुनावों को राज्य सरकार की सत्ताधारी दल अपने लिये जनता का विश्वास बनाने के लिये जबरन  इस्तेमाल करती है। क्या अब आवश्यकता नहीं है,कि एक बार फिर पंचायतीराज व्यवस्था की समीक्षा की जाये और इसकी खामियों को दूर करने के लिये आवश्यक निर्णायक कदम उठाये जाएँ ?
मेरा मानना है, कि राजीव गांधी ने पंचायती राज व्यवस्था को जो सपना देखा था, कम से कम आज की स्थिति देखकर निश्चित कहा जा सकता है, कि यह उनका सपना नहीं होगा। मंडल कमीशन के लागू होने से देश में पिछड़े वर्ग के समुदाय को देश की आर्थिक ,सामाजिक , शैक्षिक और राजनैतिक मुख्य धारा में आने का अवसर मिला।  लेकिन इसके साथ ही जाति और समुदाय को केन्द्र में रखकर राजनैतिक दलों का गठन भी देश में हुआ और क्षेत्रीय दलों के नाम पर सत्ता भी प्राप्त की। निश्चित रुप से सबसे ज्यादा नुकसान पूरे देश में विस्तारित एकमात्र राजनैतिक दल भारतीय राष्ट्रीय काॅग्रेस को ही हुआ और भारतीय जनता  पाटीॅ ने हिन्दुत्व के मुद्दे को अपनाते हुये अपना स्थान हर समुदाय के लोगों पर कमोबेश कायम कर लिया।त्रिस्तरीय पंचायती राज के लागू होने के बाद तो काॅग्रेस की स्थिति दिनों दिन प्रत्येक राज्य में कमजोर पड़ने लगी और बदस्तूर जारी है, क्योंकि पंचायतीराज  व्यवस्था में यदि ग्राम प्रधान के पद के निर्वाचन को छोड़ दिया जाये तो  क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद को चुनाव सीधे जनता के  द्वारा न होकर जनता के द्वारा चुने गये क्षेत्रपंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member) और जिला पंचायत सदस्यों द्वारा किया जाता है। आज भी कमोबेश अधिकांश  क्षेत्रपंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्यों का  चुनाव जनता जातिगत  और समुदाय को आधार मानकर करती है। यही चुने गये क्षेत्रपंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member)  और जिला पंचायत सदस्य जब क्षेत्रपंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते है तो  धनबल,बाहुबल  और सत्ताधारी दल के प्रभाव में आ जाते हैं। राष्ट्रीय दल विशेषकर काॅग्रेस यदि आकलन करे तो पायेगी कि जहाॅ जहाॅ समुदाय आधारित  क्षेत्रीय दलों की सरकारें सत्ता  में रही हैं,वहाॅ वहाॅ  ग्रामीण क्षेत्रों में भी काॅग्रेस कमजोर हुई है।

Thursday 14 May 2015

आवारा कुत्ता



आवारा कुत्ता

कई बार सुना होगा.........साला आवार कुत्ता...गली का कुत्ता.......लेकिन कभी गौर किया है, कौन और कैसे हैं, ये कुत्ते....। अक्सर अमीर (धन, सम्पदा, राजनीति और समाज में ऊँचा अहोदा प्राप्त) लोग भी कुत्ते पालते हैं. एक नहीं..दो नहीं ....दस-दस, लेकिन आवारा कुत्तों का भी एक एरिया होता है. जहाँ एक नहीं...दो नहीं...संख्या में वो भी दस से कम नहीं होते, लेकिन आवारा कुत्तों का एरिया भी गरीबों की बस्तियों में ही होता है। और अपने एरिया के हर परिवार के जबरदस्त वफादार। कभी आपने आवारा कुत्तों का डेरा किसी अमीर की बस्ती में नहीं देखा होगा।

दुनिया में सबसे वफादार जानवर का तमगा भी कुत्तों को ही मिला है, अब चाहे अमीर का कुत्ता हो या फिर आवारा कुत्ता। आप देखिये और महसूस करिये, कि सुबह और शाम कई अमीर और तथाकथित अमीर (मध्यम वगॅ) के लोग आपको अपने कुत्तों को टहलाते हुये दिख जायेंगे। यदि अमीर आदमी खुद ही अपने कुत्ते को टहलाने निकलता है और किसी गरीब की बस्ती से होकर गुजरता है, तो उस बस्ती के सारे आवारा कुत्ते एक आवाज में उस अमीर कुत्ते की घेराबन्दी कर देते है....इक्कठ्ठा होकर उस पर भौंकना शुरु कर देते हैं। वाकई वफादार जानवर है, कुत्ता, उसे पता है, कि एक अमीरजादे का कुत्ता उसके एरिया में आ गया है, पता नहीं किस गरीब का आशियाना छीने। ऐसा नहीं कि अमीर का कुत्ता वफादार नहीं है, वो भी चेन से बंधे होने के बावजूद अपने मालिक के पक्ष में भौंकता है।

कहने का आशय यह है, कि जिंदगी के इस जीवन चक्र में भी आपने कई वफादार कुत्तों को इंसानी रुप में रहते हुये इन तथाकथित अमीरों के सामने दूसरे आवारा कुत्तों (गरीब) पर भौंकते हुये अक्सर देखा होगा.............कुत्ते वाकई वफादारी के ठोस सबूत है।

Saturday 25 April 2015

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिलाओं की भागीदारी एवं नेतृत्व क्षमता का विकास।



f=Lrjh; iapk;r pquko esa efgykvksa dh Hkkxhnkjh ,oa usr`Ro {kerk dk fodkl
                    
izLrqr v/;;u dk eq[; mn~ns”; mRrjk[k.M jkT; esa ykxw iapk;rh jkt vf/kfu;e rFkk 73osa ,oa 74osa lafo/kku la”kks/ku ds vuqlkj f=Lrjh; iapk;r pquko esa efgykvksa gsrq 50 izfr”kr vkj{k.k O;oLFkk gksus ds Ik”pkr o’kZ 2008 ,oa 2014 ds lEiUu pqukoksa esa efgykvksa dh Hkkxhnkjh rFkk mudh usr`Ro {kerk dk fodkl ,oa l”kDrhdj.k tSls egRoiw.kZ fcUnqvksa ij ewY;kadu izLrqr djuk gSA
        v/;;u ds fu’d’kZ mRrjk[k.M ds ftyk uSuhrky ds vfr fiNMs- fodkl [k.M vks[kydkaMk dh leLr xzke iapk;rksa esa o’kZ 2008 rFkk 2014 esa lEiUu xzke iz/kku ,oa {ks= iapk;r lnL; ¼chMhlh esEcj½ ds pqukoksa ij vk/kkfjr gSA izLrqr v/;;u esa jkT; pquko vk;qDr] mRrjk[k.M }kjk ladfyr MkVk ds lkFk lkFk lk{kkRdkj vuqlwph ,oa lewg ppkZ ds ek/;e ls lwpukvksa dk ,d=hdj.k fd;k x;k gS] vkSj vko”;drkuqlkj f}rh;d Lkzksrksa ls izkIr rF;ksa dk Hkh iz;ksx fd;k x;k gSA efgykvksa ds pquko esa izfrHkkx djus ls mudh usr`Ro {kerk dk fodkl] fu.kZ; ysus dh izfdz;k esa Hkkxhnkjh rFkk orZeku lkekftd] vkfFkZd] jktuSfrd fLFkfr dk fo”ys’k.k djrs gq,s v/;;UkkRed fu’d’kksZa dks izLrqr fd;k x;k gS] ftudk lkj la{ksi esa fuEuor gS &
·         v/;;u ls Kkr gksrk gS fd] o’kZ 2008 ds xzke iapk;r pquko esa fodkl [k.M vks[kydkaMk tSls vfr fiNMs- {ks= esa dqy 76 xzke iapk;rksa ds iz/kku in ds pquko esa izR;k”kh ds :i esa efgykvksa dh izfrHkkfxrk iq:’kksa ds eqdkcys 18 izfr”kr vf/kd jghA ogha {ks= iapk;r lnL; ds dqy 35 inksa ds pquko esa ;g izfr”kr iq:’kksa ds eqdkcys 14 izfr”kr vf/kd jgkA
·         o’kZ 2014 ds xzke iz/kku in ds pquko esa izR;k”kh efgykvksa dh Hkkxhnkjh esa iq:’kksa ds eqdkcys 10 izfr”kr dh deh ns[kh x;h] ysfdu {ks= iapk;r lnL; in gsrq ;g Hkkxhnkjh iq:’kksa dh vis{kk 02 izfr”kr vf/kd jghA
·         fu’d’kksZs ds vk/kkj ij Kkr gqvk fd bu lEiUu gq,s iapk;r pquko esa vks[kydkaMk fodkl[k.M esa xzke iz/kku ,oa {ks= iapk;r lnL; in gsrq o’kZ 2008 esa pquko esa izR;k”kh jgh dqy efgykvksa esa ls 23 izfr”kr efgyk,sa vuqlwfpr tkfr ds ifjokjksa ls gSaA rFkk o’kZ 2014 esa pquko esa izR;k”kh jgh dqy efgykvksa esa ls 32 izfr”kr efgyk,sa vuqlwfpr tkfr ds ifjokjksa ls gSaA
·         foxr~ 02 f=Lrjh; iapk;r pquko ds v/;;u ls Li’V gS] fd xzkeh.k {ks=ksa dh efgykvksa esa usr`Ro djus dh yyd iq:’kksa ds leku gh gS ;k muls vf/kd gSA ;gkW ij mu ifjokjksa dh efgykvksa dks vHkh Hkh la”k; dh utjksa ls ns[kuk mfpr izrhr gksrk gS] tgkW ij muds ifjokj ds iq:’k lnL; us efgyk vkjf{kr lhV gks tkus ds dkj.k tcju] foo”krk vFkok ykpkjhiu esa efgyk dks pquko esa izfrHkkx djk;kA
·         v/;;u esa ,d NksVs lSEiy ds :i esa pquko esa izfrHkkx dj pqdh efgyk izR;k”kh ,oa fuokZfpr izfrfuf/k ls lk{kkRdkj ds }kjk ;g fu’d’kZ vk;k fd] efgykvksa dk ifjokj ds lkFk lkFk lekt esa fu.kZ; ysus dh izfdz;k esa Hkkxhnkjh ds izfr”kr esa o`f) gqbZ gS rFkk iq:’k iz/kku jktuhfr ds {ks= esa efgykvksa ds pquko esa Hkkxhnkjh ds izfr ,d ldkjkRed cnyko vk;k gSA ysfdu pquko esa Hkkxhnkjh dh rqyuk esa ;g fLFkfr larks’ktud ugha dgh tk ldrh gSA
vr% Li’V gS] fd o’kZ 2008 ls iwoZ dh fLFkfr ls vkt efgyk;sa T;knk eq[kj] usr`Ro”khy ,oa l”kDr gksdj iapk;r pqukoksa esa izfrHkkx dj jgh gSaA mudh usr`Ro {kerk dk yxkrkj fodkl Hkh gks jgk gSA gj 05 o’kZ ds fu;fer vUrjky esa lEiUu gksus okys bu iapk;r pqukoksa esa pdzkuqdze esa lhVksa ds vkj{k.k dh fLFkfr gj pquko ckn ifjofrZr gksus ds ckn Hkh efgyk;sa ;fn vukjf{kr inksa ij Hkh iq:’kksa ds cjkcj izfrHkkx djus yxs rks fuf”pr rkSj ij dgk tk ldsxk fd] iapk;r pqukoksa esa 50 izfr”kr vkj{k.k dk YkkHk feyus ls efgykvksa dh usr`Ro {kerk dk fodkl lgh ek;uksa esa gqvk gSA
                    

Sunday 15 February 2015

अमिताभ बच्चन कलाकार से को-स्टार फिर स्टार फिर सुपर स्टार - अब फिर से कलाकार

अमिताभ बच्चन

कलाकार से को-स्टार फिर स्टार फिर सुपर स्टार - अब फिर से कलाकार

 

सन 1969 में अमिताभ बच्चन का फ़िल्मी सफर सात हिंदुस्तानी से शुरू हुआ, आज षमिताभ की चर्चा 2015 में हो रही हैं।  सन 1986 से उनका फैन होने के नाते कुछ उनकी फिल्मों के टाइटल को जोड़कर अपने विचार रख रहा हूँ, जरूरी नहीं कि खुद अमिताभ जी या जनता मेरे इन विचारों से सहमत हो।

 

वर्ष 1969 से 1972 तक को -स्टार के रूप में अमिताभ जी सात हिंदुस्तानी में से एक हिंदुस्तानी बनकर दीवाना बनने की बजाये परवाना बन गए , तभी रेशमा और शेरा से मिलने के बाद संजोग से गुड्डी एक प्यार की कहानी बनकर उनके फिल्मी जीवन में आई।  अमिताभ जी ने सोचा नहीं होगा एक दिन यह गुड्डी उनकी जीवन संगनी बनकर हमेशा उनके साथ रहेगी , लेकिन किसी कि एक नज़र क्या लगी, बंसी बिरजू ने अमिताभ जी को रास्ते का पत्थर बना दिया और बॉम्बे से गोवा तक जाने में उनके बंधे हाथ थे।

 

वर्ष 1973 से 1976 में एक स्टार अमिताभ बच्चन का उदय हिंदुस्तान में हुआ। दुनिया की गहरी चाल से मुकाबला करते हुए ज़ंजीर की जोरदार खनखनाहट ने सबको हिला कर रख दिया, अमिताभ जी की फ़िल्म अभिमान आई, लेकिन उनमें स्वाभिमान हमेशा से ज्यादा रहा, सो एक नमक हराम से सौदाग़र की कसौटी पर भी खरे उतरे। उस वक़्त तक अमिताभ जी की स्टार के रूप में इतनी ख्याति हो चुकी थी, कि उनका अकेले घूमना मुश्किल हो चुका था, तभी बेनाम और मजबूर होकर रोटी कपड़ा और मकान की तलाश मैं अपनी मिली के साथ चुपके चुपके दुनियां की नजरों से फरार हो गए।लेकिन तभी दो अनजाने एक  हो रहे थे, जवानी के शोले भी भड़के, तभी जमीर की दीवार सामने आ गई, तो कभी कभी सब से छुपकर मिलने वालों ने हेरा फेरी छोड़कर शादी कर ली।

 

वर्ष 1977 से 1980 के बीच एक स्टार अमिताभ बच्चन सुपर स्टार बन गया। अमिताभ जी का आलाप शायद सब सुन नहीं पाये, जनता की अदालत ने अमर अकबर अन्थोनी को पूरे नंबर से पास किया, अपने ईमान धरम पर कायम रहते हुए अमिताभ जी ने अपना खून पसीना एक कर अपनी कमाई से गरीबों की परवरिश भी बखूबी की , गंगा की सौगंध खाते  हुए सभी कस्मे वादे निभाए और अपनी पूरी जिंदगी में कभी भी बेशर्म नहीं बने।  तभी भगवान शिव शंकर ने मेहनत और लगन को देखकर अपना त्रिशूल अमिताभ जी को देते हुऐ , उन्हें मुकद्दर का सिकन्दर बना दिया।

 

हिंदुस्तान के उनके चाहने वालों ने उन्हें डॉन ही नहीं बल्कि भारतीय फ़िल्म जगत का सुपरस्टार बना दिया।

 

अमिताभ जी ने कभी भी असली जिंदगी में मिस्टर नटवर लाल बनकर अपनी  मंजिल पाने के लिए दा ग्रेट गैम्बलर बनकर जुर्माना नहीं भरा।  सभी के सुहाग की सलामती की कामना करते हुए राम बलराम के साथ काला पत्थर पार कर शान से दोस्ताना निभाया और कभी भी दो और दो पांच नहीं किया और हमेशा नसीब के धनी बने रहे।

 

वर्ष 1981 से 1984 का समय सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के फ़िल्मी और वयक्तिगत जीवन में काफी दुश्वारियां लेकर आया।  कई बरसों का याराना जिसका सिलसिला अंदर ही अंदर काफी लम्बा चला, वो बरसात की एक रात में पल भर में ही लावारिश जैसा बन गया, खुद्दार -बेमिसाल -देशप्रेमी -नमक हलाल जैसी शक्ति से भरपूर अमिताभ जी ने दुनिया की ताश के बाजीगर कालिया को भी सत्ते पे सत्ते का मजा लेने को विवश कर दिया।

 

अमिताभ असल जिंदगी में कभी भी नास्तिक नहीं रहे, लेकिन फिर भी अनहोनी  ने न जाने क्यों अँधा कानून बनाकर महान सुपर स्टार की पुकार नही सुनी और कुली में उन्हें असली में मौत के करीब ला दिया। लेकिन अपनी निजी जिंदगी में कभी भी शराबी न रहने वाले अमिताभ जी को उनके चाहने वालों की प्रार्थना से खुश होकर भगवान ने एक नई जिंदगी दी और अमिताभ जी ने इस नई जिंदगी का अलग ही तरीक़े से इन्किलाब किया।

 

वर्ष 1985 से 1988 के बीच भी अमिताभ बच्चन सुपर स्टार फ़िल्मी दुनिया में जरूर बने रहे, परन्तु निजी जीवन में गिरफ्तार तो नहीं हुये लेकिन अंपने एक पारिवारिक मित्र की मित्रता को निभाते हुए काफी बदनाम  हुये। लेकिन परेशानियों से उबरते हुए आखिरी रास्ता चुना और एक मर्द के रूप में अमिताभ जी ने गंगा जमुना सरस्वती की कसम खाकर शहंशाह की तरह रहना सीख लिया।

 

वर्ष 1989 से 1992 के बीच अमिताभ जी का सुपरस्टार का रुतबा कम होने लगा, एक जादूगर ने ऐसा तूफ़ान उठाया कि हमेशा मैं आज़ाद हूँ कहने वाले अमिताभ बच्चन को अग्निपथ से भी गुजरना पड़ा और लगातार कभी आज का अर्जुन बनकर , कभी इंद्रजीत बनकर, कभी अकेला रहकर और तो और ख़ुदा  गवाह है, इस बीच  हम जैसों जो छोड़कर, जो उनके जबरदस्त मुरीद हैं, उनके अधिकतर फैन ने उनका कोई भी अजूबा नहीं माना।

Sunday 8 February 2015

रहस्यवादी, दार्शनिक ,देशभक्त - कवि प्रदीप

रहस्यवादी, दार्शनिक ,देशभक्त - कवि प्रदीप

 रविवार , 08 फरवरी ,2015 

जन्मशताब्दी वर्ष 2015 में भावपूर्ण स्मरण

06 फरवरी 1995 को उज्जैन ज़िले के बड़नगर में जन्म लेने वाले रामचन्द्र नारायण द्विवेदी, जिन्हें सारा भारतवर्ष कवि प्रदीप के नाम से जानता है। यह वर्ष उनकी जन्मशताब्दी का वर्ष है , एक रहस्यवादी, दार्शनिक , देशभक्त कवि प्रदीप आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं , जितना कि वह देश की आजादी एवं उसके बाद के कुछ वर्षों में रहे।
आज देश की युवा पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर जिस पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुकरण कर रही है, ऐसे में कवि प्रदीप के गीतों की सार्थकता और भी अधिक  हो जाती है। हिंदी फिल्म कंगन का वो अमर गीत, ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आँख में भर लो पानी, कुछ याद करो कुर्बानी --------------- जिसे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने 26 जनवरी 1963 को प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के निवेदन पर भारत चीन युद्ध में शहीद हुये वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हुये, नेशनल स्टेडियम दिल्ली में गाया , तो उपस्थित सभी जनों  के साथ ही पंडित नेहरू की आँखें नम हो गयी  तथा लता जी का गला भर आया।
बंधन फिल्म का गाना, चल चल रे नौजवान ------------------- आज की युवा पीड़ी को सन्देश देने के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है।
आज के परिवेश में, जब हर इंसान निजी स्वार्थ की ओर कुछ ज्यादा ही भागदौड़ कर रहा है, और अच्छे - बुरे की परवाह भी उसे नहीं रही, जब  तक की कोई ठोकर न लग जाये, ऐसे में कवि प्रदीप के  फिल्म नास्तिक का गीत , कितना बदल गया इंसान ------------------------ फिल्म चंडी पूजा का गीत, कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई --------------------------फिल्म दो बहन का गाना, मुखड़ा देख ले प्राणी दर्पण में ----------------आदि बरबस ही दिल और दिमाग को झकझोरने लगते हैं।
जन्मशताब्दी वर्ष में कवि प्रदीप को आज की युवा पीड़ी से जोड़ना होगा, आज संचार तकनीकी क्रांति के औजार मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर , नोट बुक आदि न जाने कितने उपकरण हैं, जो इंटरनेट के द्वारा पल भर में कवि प्रदीप को जब चाहें याद कर सकते हैं। कुछ ऐसे युवा भी हैं, जो फिल्म दशहरा, दूसरों का दुखद दूर करने वाले -------------------------फिल्म कभी धूप कभी छाओं का गीत, सुख दुःख दोनों रहते ---------------से भी अपने निराश जीवन में आशा का एक नया संचार कर सकते हैं।
कवि प्रदीप को याद करते हुए बस आज  इतना ही युवा वर्ग से कहना है , हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के , इस देश को रखना मेरे --------------------------------फिल्म जागृति। 

जय हिन्द ! जय कवि प्रदीप